भगवान श्री कृष्ण के पास प्रथम कला श्री के रूप में है उनके पास हमेसा धन संपदा बनी रहेगी है.
भू कला उस कला को कहते है जिस व्यक्ति के पास पृथ्वी का राज्य भोगने की क्षमता होती है.
कीर्ति उस कला को कहते जिससे मान सम्मान और यश कीर्ति चारों दिशाओं में गूंजती है .
चौथी कला का नाम इला है जिसका अर्थ होता है मोहक वाणी.
भगवान श्री कृष्ण की पांचवी कला का नाम है लीला उन्हे लीलाधर भी कहते है.
ऐसा रूप जिसे देखकर मन स्वत: मन आकर्षित होने लगे और प्रसन्न होने लगे
भगवान श्री कृष्ण वेद वेदांग के साथ ही संगीत कला में भी पारंगत थे। राजनीति एवं कूटनीति का ज्ञान श्री कृष्ण में भरा हुआ था इसी कला का नाम विद्या है।
जिसके मन में किसी भी प्रकार का छल कपट न हो वह विमल कला से युक्त माना जाता है।
महाभारत के युद्ध मे श्री कृष्ण ने नवी कला का परिचय देते हुए युद्ध से विमुख अर्जुन को युद्ध करने के लिए गीता का ज्ञान दिया।
भगवान ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था।
सर्व शक्तिमान श्री कृष्ण सामान्य मनुष्य की तरह कर्म करते हैं और लोगों को कर्म करने की प्रेरणा देते हैं।
जिसने अपने मन को केंद्रित कर लिया हो ।आत्मा में लीन कर लिया हो वस योग कला से संपन्न माना जाता है।
प्रहवि इसका अर्थ विनय होता है। भगवान श्री कृष्ण संपूर्ण जगत के स्वामी है फिर भी वह विनम्र रहते है .
श्री कृष्ण कटु सत्य बोलने से भी परहेज नहीं रखते और धर्म की रक्षा के लिए सत्य को परिभाषित करना भी जानते हैं इसका उदाहरण हमे महाभारत के युध्द मे देखने को मिलता है
इसना इस कला का तात्पर्य है कि व्यक्ति में उस गुण का मौजूद होना जिससे वह लोगों पर अपना प्रभाव स्थापित कर पाता है।
बिना प्रत्युकार की भावना से लोगों का उपकार करना यह अनुग्रह है। भगवान श्री कृष्ण उसकी हर मनोकामना पूरी करते हैं।