Homeजीवन परिचयबुद्ध पूर्णिमा का इतिहास एवं महत्व | Buddha Purnima in Hindi

बुद्ध पूर्णिमा का इतिहास एवं महत्व | Buddha Purnima in Hindi

इस लेख बुद्ध पूर्णिमा का इतिहास एवं महत्व | Buddha Purnima in Hindi में हम बुद्ध पूर्णिमा इतिहास एवं महत्व के बारे में जानेंगे कि बुद्ध पूर्णिमा किस उपलक्ष्य में मनाया जाता है? बुद्ध पूर्णिमा कब और क्यों मनाया जाता है? बुद्ध पूर्णिमा का त्यौहार कैसे मनाया जाता है? इस बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे इसलिए इस लेख को अंत तक पूरा जरूर पढ़िए।

Table of Contents

बुद्ध पूर्णिमा का इतिहास (Buddha Purnima)

बुद्ध पूर्णिमा का इतिहास अति प्राचीन है। ऐतिहासिक घटनाओं के आधार पर देखा जाए तो आज से लगभग 2500 वर्ष पहले का वर्णन मिलता है।

आइए अब हम इसे क्रमबद्ध तरीके से जानते हैं।

बुद्ध पूर्णिमा कब और क्यों मनाया जाता है?

  • प्रतिवर्ष वैशाख पूर्णिमा के दिन बुद्ध पूर्णिमा का त्यौहार मनाया जाता है।

  • वैशाख पूर्णिमा का दिन महात्मा बुद्ध के जीवन में हुई घटनाओं से गहरा संबंध है।

  • बौद्ध धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महात्मा बुद्ध का जन्म, ज्ञान की प्राप्ति व महापरिनिर्वाण ये तीनों घटनाएं वैशाख पूर्णिमा के दिन ही घटित हुई।

  • गौतम बौद्ध के द्वारा ही बौद्ध धर्म की स्थापना की गई थी। इनके जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण के उपलक्ष में बुद्ध पूर्णिमा का त्यौहार मनाया जाता है।

बुद्ध पूर्णिमा का महत्व

गौतम बौद्ध को एशिया का ज्योतिपुंज अर्थात लाइट ऑफ एशिया कहा जाता है। इनके विचारों और दर्शनों का प्रभाव राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर है।

गौतम बौद्ध थे धार्मिक और वैचारिक अनुयाई पूरे विश्व में मौजूद है।

ऐतिहासिक दृष्टि से देखे हैं तो कई महान और प्रतापी शासकों ने बौद्ध के विचारों का अनुसरण किया और बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार किया। मौर्य वंश के प्रतापी शासक सम्राट अशोक इनमें से एक प्रमुख नाम है।

विश्व शांति व मानव सभ्यता के विकास में बौद्ध के विचार और सिद्धांत को नकारा नहीं जा सकता है।

भारत के सभी शासकीय एवं अर्ध शासकीय विभागों में इस दिन राष्ट्रीय अवकाश होता है।

बुद्ध पूर्णिमा का त्यौहार कैसे मनाया जाता है

  • बुद्ध पूर्णिमा का त्यौहार बौद्ध धार्मिक परंपराओं मान्यताओं एवं रीति-रिवाजों के अनुसार मनाया जाता है।

  • सामान्यतः इस दिन सफेद वस्त्र धारण किए जाते हैं। व प्रसाद के रूप में खीर बाँटी जाती है।

बुद्ध पूर्णिमा के इतिहास और महत्व को जानने के लिए तथागत गौतम बुद्ध जीवन से संबंधित कुछ घटनाओं स्कोर जानना आवश्यक है।

अतः हम गौतम बुद्ध के जीवन से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं को जानेंगे।

 

गौतम बुद्ध का जीवन परिचय

Buddha
Buddha

गौतम बुद्ध के जीवन से संबंधित कई महत्वपूर्ण घटनाएं हैं जिन्हें हम क्रमबद्ध रूप से जानेंगे।

बुद्ध के बचपन का नाम नाम

गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ है।

बुद्ध के उपनाम उपनाम

  • गौतम
  • तथागत
  • महात्मा
  • लाइट ऑफ एशिया
  • एशिया का प्रकाश पुंज

गौतम बौद्ध का जन्म

  • गौतम बुद्ध का जन्म 463 ईसा पूर्व कपिलवस्तु के लुंबिनी नामक स्थान (वर्तमान में नेपाल में है) पर वैशाख पूर्णिमा के दिन हुआ था।

गौतम बुद्ध के पिता

  • इनके पिता शुद्धोधन शाक्य गण के मुखिया थे। वर्ण व्यवस्था के अनुसार क्षत्रिय थे।

गौतम बुद्ध की माता

  • इनकी माता महामाया कोलियवंशी थी। गौतम बुद्ध के जन्म के कुछ दिन बाद ही इनकी माता की मृत्यु हो गई।

गौतम बुद्ध की मौसी

  • इनका पालन-पोषण इनकी मौसी महा प्रजापति गौतमी ने किया।

गौतम बुद्ध का विवाह

  • 16 वर्ष की आयु में सिद्धार्थ का विवाह के कुल की कन्या यशोधरा से हुआ जिन के अन्य नाम गोपा, बिंबा, भद्रकच्छना भी हैं।

गौतम बुद्ध के बच्चे

  • सिद्धार्थ और यशोधरा का एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका नाम “राहुल” था।

गौतम बुद्ध के जन्म के संबंध में भविष्यवाणी

ऐसी मान्यता है कि गौतम बुद्ध के जन्म से पूर्व भविष्यवाणी की गई थी शुद्धोधन को पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी जो प्रतापी शासक बनेगा या सन्यासी बनेगा।

पिता शुद्धोधन ने सिद्धार्थ को बचपन से ही विलासिता पूर्ण जीवन जीने के सभी संसाधन दिए। ताकि पुत्र सन्यासी न बन सके। इसलिए बाहरी दुनिया के दुखों से इन्हें दूर रखा गया।

प्रथम यात्रा

एक दिन इन्होंने अपने राज महल के बाहर यात्रा की जिसमें उन्होंने सबसे पहले बाहरी दुनिया के लोगों को देखा।

  1. इन्होंने सबसे पहले बूढ़े व्यक्ति को देखा जो मृत्यु के समीप था।
  2. इसके बाद उन्होंने बीमार व्यक्ति को देखा जो बीमारी से ग्रस्त था और यह भी मृत्यु के समीप था और दुखी था।
  3. तीसरा व्यक्ति इन्होंने एक मृत व्यक्ति को देखा वहां पर भी दुख एवं शोक का माहौल था।
  4. चौथा व्यक्ति एक सन्यासी को देखा जो कृष्ण चित्र था और किसी प्रकार के दुख सुख के भाव नहीं थे।

इसके पश्चात उन्होंने अपने सारथी चन्ना से पूछा यह व्यक्ति कौन है जो इतना प्रसन्न है।

इसके पश्चात इनके सारथी ने इन्हें बताया यह संसार दुख से भरा हुआ है और यह चौथा व्यक्ति सन्यासी है जिसने संसार के सभी प्रकार के लोग लालच मोह माया को छोड़कर सन्यासी जीवन को चुना।

महाभिनिष्क्रमण

सांसारिक समस्याओं से व्यथित होकर सिद्धार्थ ने 29 वर्ष की अवस्था में गृह त्याग दिया इस गृह त्याग को बौद्ध ग्रंथों में महाभिनिष्क्रमण कहा जाता है।

गौतम बुद्ध के गुरु

गृह त्याग के पश्चात गौतम बुद्ध वैशाली के नजदीक आधार कलाम के आश्रम गए यहां से बोधगया और प्रस्थान किया।

गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति

सिद्धार्थ ने बोधगया में पीपल के वृक्ष के नीचे निरंजना नदी के किनारे 6 वर्ष तक बिना अन्न जल ग्रहण किए हुए कठिन तपस्या की और 35 वर्ष की आयु में बीसा पूर्णिमा की रात पीपल के वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ।

ज्ञान प्राप्ति के बाद इन्हें बुद्ध के रूप में जान जाने लगा।

गौतम बुद्ध के प्रथम शिष्य

बोधगया में ही उनके पास दो बंजारे तपुस्स तथा मल्लिक नाम के दो सौदागर बंजारे आए बुद्ध ने दिन सुधारों को अपना शिष्य बनाया।

इनकी पहली महिला शिष्य इनकी मौसी महा प्रताप प्रजापति गौतमी थी।

बौद्ध धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इनकी सबसे नजदीकी आनंद थे।

गौतम बुद्ध का प्रथम उपदेश

गौतम बुद्ध ने सारनाथ में पांच ब्राह्मण सन्यासियों को प्रथम उपदेश दिया।

धम्मा चक्र प्रवर्तन

सारनाथ में पांच ब्राह्मण संन्यासियों को दिया गया प्रथम उपदेश कोही बौद्ध ग्रंथों में धर्म चक्र प्रवर्तन के नाम से जाना जाता है।

बौद्ध संघ की स्थापना

सारनाथ में ही पांच सन्यासियों के साथ संघ की स्थापना की। इस संघ को ही बौद्ध संघ कहा गया बांस से जुड़ने वाले सन्यासी सदस्यों को गण कहा गया।

गौतम बुद्ध के अंतिम उपदेश

इन्होंने अपने अंतिम उपदेश कुशीनगर में दिए।

गौतम बुद्ध की मृत्यु

कुशीनगर के देवरिया नामक स्थान पर 483 ई सा पूर्व में 80 वर्ष की अवस्था में इनकी मृत्यु हुई।

महापरिनिर्वाण

80 वर्ष की अवस्था में इनकी मृत्यु हुई जिसे बौद्ध ग्रंथ में महापरिनिर्वाण की संज्ञा दी गई।

इनकी मृत्यु के पश्चात इनके शरीर के अवशेषों  को 8 भागों में बाँटकर आठ स्थानों पर स्तूप बनाए गए।

चार आर्य सत्य

बुद्ध ने सांसारिक दुखों के संबंध में चार आर्य सत्य का उपदेश दिया यह निम्न है-

  1. दु:ख
  2. दुख का कारण
  3. दुख निरोध
  4. दुख निरोधगामिनी प्रतिपदा

अष्टांगिक मार्ग

सांसारिक दुखों से मुक्ति हेतु इन्होंने अष्टांगिक मार्ग दिया। इनके अनुसार अष्टांगिक मार्ग के पालन करने के उपरांत मनुष्य की बहुत रचना नष्ट हो जाती है और उसे निर्वाण प्राप्त हो जाता है।

  1. सम्यक दृष्टि
  2. समय एक संकल्प
  3. सम्यक वाणी
  4. सम्यक कर्मान्त
  5. सम्यक आजीब
  6. सम्यक व्यायाम
  7. सम्यक् स्मृति
  8. सम्यक समाधि

प्रतीत्यसमुत्पाद

” प्रतीत्यसमुत्पाद ” गौतम बुद्ध के उपदेशों का सार एवं उनकी संपूर्ण शिक्षाओं का आधार स्तंभ है।

” प्रतीत्यसमुत्पाद ” का अर्थ है कि संसार की सभी वस्तुएं कार्य और कारणों पर निर्भर करती है।

बौद्ध धर्म के त्रिरत्न

बौद्ध धर्म के त्रिरत्न है – बुद्ध, संघ और धम .

निर्वाण

निर्माण बौद्ध धर्म का परम लक्ष्य है जिसका अर्थ है जीवन मरण चक्र से मुक्त हो जाना।

10 शील

गौतम बुद्ध ने निर्वाण प्राप्ति के मार्ग को सरल बनाने के लिए 10 शीलों पर विशेष जोर दिया। जो निम्न है-

  1. अहिंसा
  2. सत्य
  3. असत्ये
  4. व्यभिचार से बचना
  5. शराब के सेवन से दूर रहना
  6. समय से भोजन करना
  7. कोमल बिस्तर पर सोने से बचना
  8. अधिक धन का संचय न करना
  9. स्त्रियों से दूर रहना
  10. नृत्य गान आदि से दूर रहना

गौतम बुद्ध के जीवन से संबंधित घटनाएं एवं उनका संबोधन

क्र .

घटना

संबोधन

1गृह त्यागमहाभिनिष्क्रमण
2ज्ञान प्राप्तिसंबोधी
3उपदेशधम्मचक्र प्रवर्तन
4निर्वाण (मृत्यु)महापरिनिर्वाण

 

गौतम बुद्ध के जीवन से संबंधित पांच प्रतीक

क्र .घटनाप्रतीक
1जन्मकमल व सांड 
2गृह त्यागघोड़ा
3ज्ञानपीपल का वृक्ष (बोधि वृक्ष)
4 निर्वाणपद चिन्ह
5मृत्यु स्तूप


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