एक देश एक चुनाव पर निबंध | One Nation One Election in Hindi, पृष्ठभूमि, एक देश एक चुनाव की समिति, आवश्यकता, लाभ, दोष, चुनौतियां आदि ।
एक देश एक चुनाव क्या है? | What is One Nation One Election?
एक देश एक चुनाव एक प्रस्ताव है जिसके अनुसार लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं का चुनाव एक साथ कराए जाने का प्रस्ताव दिया गया है।
अर्थात पूरे देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ ही होंगे अभी यह तारीख है अलग-अलग है। यह विचार प्रथम बार 1983 में चुनाव आयोग द्वारा प्रस्तावित किया गया था।
एक देश एक चुनाव की पृष्ठभूमि | One Nation One Election Background
देश की आजादी के बाद 1952 में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए गए थे इसी तरह 1957, 1962 और 1967 में भी लोकसभा के साथ ही विधानसभाओं के चुनाव संपन्न हुए।
जैसा की लोकसभा और विधानसभाओं का कार्यकाल अपनी पहली बैठक से 5 वर्ष तक का होता है। 1968- 69 के बीच कुछ राज्य की विधानसभाओं को विभिन्न करण से अपना कार्यकाल पूरा करने के पहले ही भंग कर दिया गया था। और इन विधानसभाओं का चुनाव अलग से संपन्न कराया गया था।
वर्तमान समय में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग आयोजित होते हैं। क्योंकि इनके कार्यकाल की समय अवधि अलग-अलग है।
प्रत्येक वर्ष औसतन 5 से 7 राज्य विधानसभाओं के चुनाव होते हैं इससे कई प्रकार की समस्या उत्पन्न होती है इस कारण चुनाव आयोग ने 1983 में एक साथ चुनाव कराने का सुझाव दिया, जिसे तत्कालीन सरकार ने नकार दिया।
जस्टिस रेड्डी की अध्यक्षता वाले 1999 के विधि आयोग ने भी एक साथ चुनाव करने की सिफारिश की थी। संसद की स्थाई समिति ने वर्ष 2015 में अभी रिपोर्ट में एक साथ चुनाव करा है जाने के समर्थन को दोहराया था।
वर्ष 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा एक देश एक चुनाव का विचार पुनः प्रस्तुत किया गया। तथा कई महत्वपूर्ण तर्क दिए।
नीति आयोग ने वर्ष 2017 में एक साथ चुनाव पर वर्किंग पेपर तैयार किया था साथ ही कानून आयोग ने भी 2018 में एक वर्किंग पेपर लेकर आया था और कहा गया था कि एक साथ लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव कराने की संभावना के लिए कम से कम पांच संविधान संशोधन की आवश्यकता होगी।
एक देश एक चुनाव की समिति | One Nation One Election Committee
एक राष्ट्र एक चुनाव प्रस्ताव की जांच के लिए केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में आठ सदस्यी समिति का गठन किया है। इस उच्च स्तरीय समिति में अध्यक्ष के अलावा सात अन्य सदस्य शामिल है।
इस उच्च स्तरीय समिति के आठ सदस्यों के नाम निम्न लिखित है:-
- श्री रामनाथ कोविंद, भारत के पूर्व राष्ट्रपति
- अमित शाह, गृहमंत्री और सहकारिता मंत्री, भारत सरकार
- अधीर रंजन चौधरी, विपक्ष में सबसे बड़े येकल दल के नेता, लोकसभा
- गुलाम नवी आजाद, विपक्ष के भूतपूर्व नेता, राज्यसभा
- एन. के. सिंह, भूतपूर्व अध्यक्ष, 15वां वित्त आयोग
- सुभाष कश्यप, पूर्व महासचिव, लोकसभा
- हरीश साल्वे, वरिष्ठ अधिवक्ता तथा
- संजय कोठारी, पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त आदि अन्य सदस्य होंगे।
एक देश एक चुनाव के लिए संसद का विशेष सत्र | Special session of Parliament for One Nation One Election
एक राष्ट्र एक चुनाव के लिए केंद्र सरकार ने संसद का विशेष सत्र बुलाया है यह विशेष सत्र 18 से 22 सितंबर तक चलेगा इस सत्र में लगातार पांच बैठकें आयोजित होगी इसी दौरान सरकार एक देश एक चुनाव कब ला सकती है।
एक देश एक चुनाव की आवश्यकता | One country one election required
एक साथ चुनाव की आवश्यकता पर विचार करते हुए, निम्नलिखित मुख्य तर्क प्रस्तुत किए गए हैं:
- चुनावी मोड: भारत अक्सर चुनावी मोड में रहता है, जो सरकार, मतदाता, उम्मीदवार और अन्य प्रमुख पार्टियों पर प्रभाव डालता है।
- आदर्श आचार संहिता: चुनावों के दौरान आचार संहिता के कारण कई सरकारी गतिविधियों को स्थगित करना पड़ता है।
- खर्च: बार-बार होने वाले चुनाव महंगे होते हैं और जनता के पैसे की बर्बादी का कारण बनते हैं।
- सुरक्षा तैनाती: चुनाव के समय बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों की जरूरत पड़ती है।
- जनता की परेशानी: आचार संहिता और चुनाव प्रचार से जनता की दिनचर्या में असुविधा होती है।
- सामाजिक मुद्दे: बार-बार होने वाले चुनाव जातीय और सांप्रदायिक मुद्दों को प्रमोट करते हैं।
- नीतिगत ध्यान: चुनाव के कारण सरकार का ध्यान दीर्घकालिक नीतियों से हटकर अल्पकालिक नीतियों पर जाता है।
- आर्थिक नियोजन: चुनाव के कारण आर्थिक योजना और वित्तीय अनुसंधान प्रभावित होते हैं।
- जनता की उदासीनता: बार-बार होने वाले चुनाव जनता में लोकतंत्र के प्रति उदासीनता पैदा करते हैं।
इस तरह, एक साथ होने वाले चुनाव देश में स्थायिता और संचार की वृद्धि को प्रोत्साहित कर सकते हैं।
एक देश एक चुनाव के लाभ | Benefits of One Nation One Election
- आर्थिक लाभ: हर चुनाव के लिए अलग-अलग प्रचार, आलेखन, मशीनरी और प्रशासनिक संचालन की जरूरत होती है, जिसमें बहुत अधिक पैसा खर्च होता है। एक साथ चुनाव होने से यह खर्च कम हो सकता है क्योंकि संसाधनों का एक समय में ही पूर्ण उपयोग होगा।
- प्रशासनिक संचालन: बार-बार चुनाव होने पर पुलिस, प्रशासन, और अन्य संबंधित अधिकारियों को बार-बार तैनात करना पड़ता है। एक साथ चुनाव से यह तैनाती एक ही बार में हो सकती है, जिससे प्रशासनिक बोझ कम होगा।
- नीतिगत स्थिरता: चुनाव से पहले और चुनाव के दौरान आमतौर पर सरकारें विकास के मुद्दों को नकारात्मक प्रभाव से देखती हैं। एक साथ चुनाव होने से सरकारें चुनावी मोड में लगातार नहीं रहेंगी, और वे विकास में अधिक ध्यान दे पाएंगी।
- आदर्श आचार संहिता: यह संहिता चुनाव के समय लागू होती है जिससे सरकारें कुछ नई योजनाएं नहीं लॉन्च कर सकती। एक साथ चुनाव होने से इस संहिता का बार-बार प्रभाव नहीं पड़ेगा।
- प्रशासनिक ध्यान:चुनाव संचालन के लिए अक्सर शिक्षकों और अन्य सरकारी कर्मचारियों का उपयोग होता है, जिससे उनके मूल कार्य पर प्रभाव पड़ता है। एक साथ चुनाव होने से यह प्रभाव मिनिमल होगा।
- मतदान प्रतिशत: लोग एक ही दिन में सभी चुनावों में वोट डाल सकते हैं, जिससे मतदान प्रतिशत में वृद्धि हो सकती है।
- वोट बैंक राजनीति: एक साथ चुनाव की वजह से पार्टियों के पास विशेष जातिवादी या सांप्रदायिक अजेंडा पर ध्यान केंद्रित करने का समय कम होगा, और वे अधिक समाजिक और विकास मुद्दों पर ध्यान देने के प्रति प्रवृत्त हो सकते हैं।
एक देश एक चुनाव के दोष | One Country One Election Demerits
एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव के अनेक दोष हैं:
- मतदाताओं का प्रभावित होना: राष्ट्रीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं, स्थानीय मुद्दों को नकारा जा सकता है।
- क्षेत्रीय दलों की दुर्बलता: केंद्रीय राजनीति के प्रभाव में क्षेत्रीय मुद्दे और प्राथमिकताएं छूप सकती हैं।
- राजनीति की केंद्रीकरण: एक साथ चुनाव से भारतीय राजनीति और संस्थानों की केंद्रीकरण की प्रवृत्ति बढ़ सकती है।
- सरकार की जवाबदेही: अधिक समय तक स्थिर सरकार के चलते उनकी जवाबदेही में कमी हो सकती है।
- राष्ट्रपति शासन की संभावना: चुनावों को समान रूप से आयोजित करने के लिए कुछ राज्यों में राष्ट्रपति शासन की आवश्यकता हो सकती है।
- राजनीतिक दलों के खर्च: सरकारी खर्च में कमी हो सकती है, लेकिन राजनीतिक दलों के प्रचार में खर्च कम नहीं होगा।
- संवैधानिक संशोधन: इस प्रक्रिया में लोकतंत्र और संसदीय प्रक्रियाओं के मूल सिद्धांतों के साथ छेड़छाड़ हो सकती है।
- चुनावी चुनौतियाँ: चुनाव आयोग के लिए यह एक बड़ी और जटिल प्रक्रिया हो सकती है।
एक देश एक चुनाव की चुनौतियां | Challenges of one nation one election
संवैधानिक और कानूनी चुनौतियां का संक्षेप:
- संविधान में संशोधन की आवश्यकता: विधि आयोग के अनुसार, एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान के मौजूदा ढांचे में संशोधन की आवश्यकता है। वर्तमान संविधान के अनुसार, लोकसभा और विधानसभा के चुनावों की समय सीमा और प्रक्रिया निर्धारित है। एक साथ चुनाव कराने के लिए इन प्रक्रियाओं में संशोधन की जरूरत होती है।
- जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधन: यह अधिनियम चुनाव प्रक्रिया को निर्धारित करता है। एक साथ चुनाव के संचालन के लिए इसमें विभिन्न बदलाव करने होंगे।
- राज्यों की सहमति: संविधानिक संशोधन की पुष्टि के लिए राज्य विधान सभाओं के 50% सहमति की जरूरत होगी। संविधान में संशोधन करने के लिए बहुसंख्यक राज्यों की सहमति अनिवार्य है। यह सुनिश्चित करना मुश्किल हो सकता है क्योंकि कई राज्य सरकारें केंद्र सरकार से विभिन्न पार्टियों के अधीन होती हैं।
- अविश्वास प्रस्ताव: यदि किसी राज्य में या केंद्र में सरकार पर अविश्वास प्रस्ताव पारित होता है, तो वह सरकार गिर सकती है। इससे चुनाव की समय सीमा में असमानता आ सकती है।
- त्रिशंकु विधानसभा: यदि किसी विधानसभा में कोई पार्टी बहुमत प्राप्त नहीं कर पाती है, तो उस राज्य में पुनः चुनाव हो सकता है। इससे भी एक साथ चुनाव की प्रक्रिया में विच्छेद हो सकता है।
- स्थानीय सरकार के चुनाव: अनुच्छेद 83, 85 और 172 में संवैधानिक परिवर्तन आवश्यक हैं जो संसद और राज्य विधान सभाओं के कार्यकाल से संबंधित हैं। भारत में पंचायती राज और नगरपालिका के चुनाव स्थानीय स्तर पर होते हैं। इन चुनावों को भी एक साथ चुनाव के प्रक्रिया में शामिल करने के लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी।
एक देश एक चुनाव के समर्थन में मत | Arguments in favor of one nation one election
लगातार चावन के कारण देश में बार-बार आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू होती है जिसकी वजह से सरकार है आवश्यक नीतिगत निर्णय नहीं ले पाती है जिसके कारण विभिन्न योजनाओं को लागू करने में समस्या आती है तथा विकास कार्य भी प्रभावित होते हैं।
आदर्श चुनाव आचार संहिता के लागू होने के पश्चात सत्ता रूढ दल द्वारा किसी नई योजना की शुरुआत या वित्तीय मंजूरी नहीं दी जा सकती है तथा नियुक्ति प्रक्रिया की मनाही रहती है यदि एक ही समय पर लोकसभा व राज्यसभा को चुनाव संपन्न होगा तो यह कार्य अवरुद्ध नहीं होंगे।
प्रत्येक चुनाव का भारी बोझ सरकारी खजाने पर पड़ता है एक देश एक चुनाव से बार-बार चुनाव में होने वाले भारी भरकम खर्चे से निजात मिलेगी।
एक साथ चुनाव कराने से सरकारी कर्मचारी और सुरक्षा बलों को बार-बार चुनाव में लगाने की आवश्यकता नहीं रहेगी चुनाव ड्यूटी से अधिकतर सरकारी कर्मचारी और शिक्षकों का कार्य प्रभावित होता है जो एक साथ चुनाव से अपेक्षाकृत कम प्रभावित होगा।
एक देश एक चुनाव की आलोचना | Criticism of One Nation One Election
- विपक्षी राजनीतिक दलों, जैसे कि INC, CPI, AIMIM, और NCP, ने एक साथ चुनाव के प्रस्ताव की आलोचना की है।
- इन्होंने इस पर व्यावहारिक और संवैधानिक समस्याओं को उठाया है, जैसे कि विभिन्न विधानसभाओं और संसद की अवधियों को मेल कराने की जरूरत।
- आलोचक मानते हैं कि एक साथ चुनाव राजनीतिक लाभ के लिए प्रस्तुत किया गया है, जिससे मतदाता का व्यवहार प्रभावित हो सकता है और वे स्थानीय मुद्दों की बजाय राष्ट्रीय मुद्दों पर मतदान कर सकते हैं।
- स्थानीय और क्षेत्रीय दलों का मानना है कि उन्हें केंद्र सरकार द्वारा नकारा जा सकता है, जिससे भारतीय लोकतंत्र की गहराई और विविधता पर प्रभाव पड़ सकता है।
- डॉ. एसवाई कुरैशी ने तर्क दिया कि लगातार चुनाव मतदाता और राजनेताओं के बीच संवाद और जवाबदेही बढ़ाते हैं, और इससे जमीनी स्तर पर अर्थव्यवस्था को भी फायदा होता है। एक साथ चुनाव की स्थिति में इस प्रकार के लाभ हाथ से जा सकते हैं।
एक देश एक चुनाव का सारांश | Summary of One Nation One Election
किसी भी लोकतंत्र के लिए निष्पक्ष चुनाव एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है भारत एक विशाल देश है जहां प्रतिवर्ष किसी न किसी राज्य में चुनाव प्रक्रिया चलती रहती है इस निरंतर चलने वाली चुनाव प्रक्रिया से प्रशासनिक व नीतिगत निर्णय प्रभावित होते हैं साथ ही देश के खजाने पर भारी भरकम आर्थिक बोझ भी पड़ता है इस आर्थिक बोझ से बचने के लिए लोकसभा और विधानसभाओं का चुनाव एक साथ करने का विचार सामने आया है।
21वें विधि आयोग ने सुझाव दिया है कि भारत में एक साथ चुनाव करवाने के लिए समर्थ वातावरण है। इससे देश को बार-बार चुनावी माहौल से बचाया जा सकता है। हालांकि, इस प्रक्रिया के लिए विभिन्न हितधारकों की सहमति और सहयोग की आवश्यकता है। नीति आयोग ने विभिन्न विशेषज्ञों और प्रतिनिधियों से चर्चा करने का सुझाव दिया है। स्थायी समिति ने भी दो-चरण वाले चुनाव का विचार किया है जो अधिक प्रैक्टिकल हो सकता है। इन सुझावों और चुनौतियों को सामना करने के लिए व्यापक चर्चा की आवश्यकता है जिससे कि सही तरीके से सुधार किया जा सके। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पर चर्चा करने की बात की है, जो इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है।
FAQ – One Nation One Election
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