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मदर टेरेसा का जीवन परिचय | Mother Teresa Biography in Hindi

मदर टेरेसा का जीवन परिचय, Mother Teresa Biography in Hindi. मदर टेरेसा कौन थी?, नान क्यों बनी?, नाम, जन्म, पिता, माता, शिक्षा, विवाह, जीवन की प्रमुख घटनाएं, लोरेटो सिस्ट्रहुड में शामिल, धार्मिक प्रतिज्ञाएं, प्रेरणादायक वाक्य

Table of Contents

मदर टेरेसा कौन थी? (Who was Mother Teresa?)

मदर टेरेसा एक रोमन कैथोलिक नान और मिशनरी थी जिन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों, अनाथों, बीमारों और मृत्यु के कगार पर पहुंचे लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया। उन्होंने अपने जीवन का अधिकतर समय भारत में बिताया कोलकाता में 1950 में इन्होंने मिशनरीज का चैरिटी नामक संस्था की स्थापना की और अपना संपूर्ण जीवन सेवा में लगा दिया इस सेवा भाव के कारण उन्हें मदर के नाम से जाना जाता है समाज सेवा में इनका नाम सर्वोच्च श्रेणी में आता है।

Mother teresa
Mother Teresa

मदर टेरेसा का परिचय (Mother Teresa Introduction)

पूरा नाम:अगनेस गोंझा बोयाजिजू
(Agnes Gonxha Bojaxhiu)
प्रसिद्ध नाम:मदर टेरेसा
कार्य:समाज सेवा
जन्मतिथि:26 अगस्त, 1910
मृत्युतिथि:5 सितंबर, 1997 को कोलकाता, भारत में
जन्म स्थल:स्कॉप्जे, उस्मान साम्राज्य
(वर्तमान सोप्जे, मेसेडोनिया गणराज्य)
पिता का नाम:निकोल बोजशियु
माता का नाम:द्राना बोयाजिजू
परिवार:बड़ी बहन एग्नेस
तीन छोटे भाई लज़ार, फ्रांसिस और जॉर्ज
पुरस्कार:नोबेल शांति पुरस्कार (1979)
पद्म श्री (1962)
भारत रत्न (1980)
रेमन मैगसेसे पुरस्कार (1962)
अल्बर्ट श्वेत्ज़र इंटरनेशनल प्राइज़ (1965)
पोप जॉन XXIII शांति पुरस्कार (1976)
मेडल ऑफ फ्रीडम (1985)
Mother Teresa Introduction

मदर टेरेसा का नाम (Mother Teresa Full Name)

उनका वास्तविक नाम “अगनेस गोंझा बोयाजिजू” (Agnes Gonxha Bojaxhiu) था। उन्हें कलकत्ता की संत टेरेसा के नाम से जाना जाता है।

मदर टेरेसा का जन्म (Mother Teresa Birth Place)

मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को स्कॉप्जे, उस्मान साम्राज्य (वर्तमान सोप्जे, मेसेडोनिया गणराज्य) में हुआ था।

मदर टेरेसा के पिता (Mother Tarasta Father name)

मदर टेरेसा के पिता का नाम निकोल बोजशियु था। वह एक व्यापारी थे और एक चाय की कंपनी चलाते थे। वह अल्बानियाई मूल के थे और 1874 में स्कॉपजे, उत्तरी मेसिडोनिया में पैदा हुए थे। 1919 में उनकी मृत्यु हो गई।

मदर टेरेसा की माता (Mother Teresa Mother name)

उनकी माँ का नाम द्राना बोयाजिजू था।वह एक अल्बेनियाई रोमन कैथोलिक महिला थीं। मदर टेरेसा के पिता का निधन 1919 में हुआ था, जब वह केवल नौ साल की थीं। उनके माता-पिता का पालन-पोषण उनकी माँ ने अकेले ही किया।

मदर टेरेसा की शिक्षा (Mother Teresa Education)

उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय स्कूल में प्राप्त की। उन्होंने 1928 में आयरलैंड में लोरेटो सिस्टरहुड में शामिल हो गईं, जो एक रोमन कैथोलिक नन की सिस्टरहुड है। उन्होंने आयरलैंड में लोरेटो कॉन्वेंट में अपनी माध्यमिक शिक्षा पूरी की।

मदर टेरेसा की शिक्षा का संक्षिप्त विवरण:

  • प्रारंभिक शिक्षा: स्थानीय स्कूल, स्कॉप्जे, उस्मान साम्राज्य
  • माध्यमिक शिक्षा: लोरेटो कॉन्वेंट, आयरलैंड

मदर टेरेसा का विवाह (mother teresa marriage)

मदर टेरेसा ने कभी विवाह नहीं किया। वे एक रोमन कैथोलिक नन थीं और उन्होंने अपने जीवन को गरीब, बीमार और अनाथ लोगों की सेवा के लिए समर्पित कर दिया था।

मदर टेरेसा का परिवार (Mother Teresa family)

उनके पिता का नाम निकोला बोजाजियो था, जो एक अल्बेनियाई रोमन कैथोलिक व्यवसायी थे, और उनकी माँ का नाम द्रानाफुल्जा बोजाजियो था, जो भी एक अल्बेनियाई रोमन कैथोलिक महिला थीं। मदर टेरेसा पाँच भाई-बहनों में सबसे छोटी थीं। उनकी एक बड़ी बहन एग्नेस थी, और तीन छोटे भाई लज़ार, फ्रांसिस और जॉर्ज थे।

मदर टेरेसा की मृत्यु (Mother Teresa death)

मदर टेरेसा की मृत्यु 5 सितंबर, 1997 को दिल का दौरा पड़ने के कारण कोलकाता, भारत में हुई थी। उनकी मृत्यु के समय उनकी आयु 87 वर्ष थी।

टेरेसा नाम कैसे पड़ा?

मदर टेरेसा द्वारा 1931 में धार्मिक प्रतिज्ञा लेने के बाद सेंट टेरेसा (थेरेसा) ऑफ लिसीयूक्स के नाम पर “टेरेसा” नाम पड़ा।

मदर नाम कैसे पड़ा?

उस समय, नन आमतौर पर “सिस्टर” के रूप में जानी जाती थीं, लेकिन मदर टेरेसा ने अपने आप को “मदर” कहने का फैसला किया। वे गरीब और पीड़ित लोगों की माँ की तरह देख भाल करती थी , और वे उन्हें अपनी माँ की तरह प्यार और देखभाल करना चाहती थीं।

मदर टेरेसा का प्रारम्भिक जीवन

मदर टेरेसा की आवाज बहुत ही सुरीली थीं और वह अपनी मां और बहन के साथ चर्च में गाया करती थीं। वह 9 वर्ष की थीं, तब उनके पिता की मृत्यु हुई और इसके बाद उनके परिवार का आर्थिक संकट बढ़ गया। इस समय उनके परिवार को बहुत कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। 12 वर्ष की उम्र में एक धार्मिक यात्रा के अनुभव ने उनका जीवन दिशा बदल दी। 18 साल की उम्र में वह डबलिन चली गईं और फिर कभी अपने मूल घर नहीं लौटीं। जब वह नन बनीं, तो उनका नाम सिस्टर मेरी टेरेसा पड़ा।

मदर टेरेसा के जीवन की प्रमुख घटनाएं

मदर टेरेसा लोरेटो सिस्ट्रहुड में शामिल: मदर टेरेसा को बचपन से ही मानव सेवा का बड़ा शौक था जब यह 18 साल की हुई तो इन्होंने 1928 में आयरलैंड में लोरेटो सिस्टर हुड में शामिल हो गई।

मदर टेरेसा का भारत आगमन: मदर टेरेसा एक शिक्षक के रूप में 6 जनवरी 1929 को दार्जिलिंग भारत पहुंची। भारत में काम करते हुए यह गरीबों और बीमारी की पीड़ा से बहुत दुखी थी इन्होंने महसूस किया कि ऐसे लोगों की मदद की जाए जो निर्धन है गरीब है बेघर है और बीमार है। दार्जिलिंग में कुछ समय रहने के बाद ये कोलकाता चली गई।

इन्होंने कोलकाता में लोअर ऑटो कान्वेंट स्कूल में 1931 तक अध्यापन कार्य किया।

उन्होंने 1931 में पहली धार्मिक प्रतिज्ञाएं ली।

मदर टेरेसा ने 1946 में गरीबों और बीमारी की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित करने का फैसला किया।

आगे चलकर उन्होंने 1950 में ‘मिशनरीज का चैरिटी की स्थापना की जो गरीबों बीमारी नाथन और मृत्यु के समय पहुंचे लोगों की सेवा करने के लिए समर्पित एक रोमन कैथोलिक धार्मिक संगठन था।

मिशनरीज का चैरिटी के माध्यम से इन्होंने कोलकाता में कई आश्रम और अस्पताल बनाएं।

मदर टेरेसा नन क्यों बनी? (Mother Teresa became a Nun)

इन्हें हमेशा गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करने की इच्छा थी यह अपने जीवन को ईश्वर की सेवा में समर्पित करना चाहती थी इसलिए इन्होंने नन बनने का फैसला किया और उन्होंने महसूस किया कि नान बना उनकी इस इच्छा को पूरा करने का एक अच्छा माध्यम है। ये 24 मई 1931 को धार्मिक घोषणा कर ‘नन’ बन गयी।

मदर टेरेसा की धार्मिक प्रतिज्ञाएं (Mother Teresa’s religious vows)

मदर टेरेसा ने कुल तीन प्रतिज्ञाएं लीं:-

  • पहली प्रतिज्ञा: मदर टेरेसा ने 1931 में भारत में अपनी पहली धार्मिक प्रतिज्ञा ली। इस प्रतिज्ञा में, उन्होंने ईश्वर को अपने जीवन को समर्पित करने और गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा करने का वादा किया।
  • दूसरी प्रतिज्ञा: मदर टेरेसा ने 1937 में अपनी दूसरी धार्मिक प्रतिज्ञा ली। इस प्रतिज्ञा में, उन्होंने अपने जीवन को ईश्वर के सेवा में पूरी तरह से समर्पित करने का वादा किया।
  • तीसरी प्रतिज्ञा: मदर टेरेसा ने 1944 में अपनी तीसरी धार्मिक प्रतिज्ञा ली। इस प्रतिज्ञा में, उन्होंने अपने जीवन को ईश्वर के सेवा में पूरी तरह से समर्पित करने और गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा करने के लिए अपना सब कुछ बलिदान करने का वादा किया।

मदर टेरेसा ने अपनी तीनों प्रतिज्ञाओं को पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ पूरा किया। उन्होंने अपना जीवन गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा में समर्पित कर दिया और दुनिया भर के लोगों को गरीबों और असहायों की सेवा करने के लिए प्रेरित किया।

मदर टेरेसा की पहली धार्मिक प्रतिज्ञा (Mother Teresa’s first religious vow)

मदर टेरेसा ने 1931 में भारत में अपनी पहली धार्मिक प्रतिज्ञा ली। इस प्रतिज्ञा में, उन्होंने ईश्वर को अपने जीवन को समर्पित करने और गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा करने का वादा किया।

प्रतिज्ञा में निम्नलिखित वादे शामिल हैं:

  • मैं ईश्वर को अपना जीवन समर्पित करती हूं।
  • मैं गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा करने के लिए अपने जीवन को समर्पित करती हूं।
  • मैं ईश्वर के कानूनों का पालन करने और अपने धर्म में विश्वास रखने का वादा करती हूं।
  • मैं हमेशा नम्र, विनम्र और दयालु रहने का वादा करती हूं।

मदर टेरेसा ने अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए अपना जीवन समर्पित किया। उन्होंने गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा करने के लिए अपना जीवन और अपना सब कुछ बलिदान कर दिया। उन्होंने दुनिया भर के लोगों को गरीबों और असहायों की सेवा के लिए प्रेरित किया।

मदर टेरेसा की धार्मिक प्रतिज्ञा उनके कार्यों और उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी। यह प्रतिज्ञा उन्हें गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा करने के लिए प्रेरित करती रही और उन्हें एक महान मानवीय कार्यकर्ता बनने में मदद की।

मदर टेरेसा द्वारा लिखी पुस्तकें (Mother Teresa book name)

मदर टेरेसा ने दो पुस्तकें लिखीं:

  • “आनंद के छोटे-छोटे रास्ते” (1985)
  • “द कॉल ऑफ द होली हार्ट” (1987)

“आनंद के छोटे-छोटे रास्ते” एक आत्मकथा है जिसमें मदर टेरेसा ने अपने जीवन और अपने कार्यों के बारे में बताया है। यह पुस्तक दुनिया भर में एक बड़ी सफलता थी और इसे कई भाषाओं में अनुवादित किया गया है।

“द कॉल ऑफ द होली हार्ट” मदर टेरेसा के विचारों और विश्वासों का एक संकलन है। इस पुस्तक में, उन्होंने ईश्वर के प्रेम और सेवा के महत्व पर जोर दिया है।

मदर टेरेसा को प्राप्त पुरस्कार और सम्मान (Mother Teresa awards)

मदर टेरेसा को उनके मानवीय कार्यों के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। उनके द्वारा प्राप्त कुछ प्रमुख पुरस्कारों में शामिल हैं:

  • नोबेल शांति पुरस्कार (1979)
  • पद्म श्री (1962)
  • भारत रत्न (1980)
  • रेमन मैगसेसे पुरस्कार (1962)
  • अल्बर्ट श्वेत्ज़र इंटरनेशनल प्राइज़ (1965)
  • पोप जॉन XXIII शांति पुरस्कार (1976)
  • मेडल ऑफ फ्रीडम (1985)

मदर टेरेसा को इन पुरस्कारों से सम्मानित किया गया क्योंकि उन्होंने गरीब, बीमार, अनाथ और मरने वालों की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था। उन्होंने दुनिया भर के लोगों को गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा के लिए प्रेरित किया।

इसके अतिरिक्त, मदर टेरेसा को कई अन्य सम्मानों से भी सम्मानित किया गया है।

मदर टेरेसा के आश्रम का एड्रेस

निर्मला आश्रम, 54, अलीपुर रोड, कोलकाता, पश्चिम बंगाल, भारत

मदर टेरेसा का आश्रम (Mother Teresa Ashram)

मदर टेरेसा ने भारत के कोलकाता शहर में अपना पहला आश्रम बनाया। यह आश्रम “निर्मला आश्रम” के नाम से जाना जाता है। उन्होंने 1950 में मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की, जो गरीब, बीमार, अनाथ और मरने वालों की सेवा करने के लिए समर्पित एक कैथोलिक धर्मार्थ संगठन है। उन्होंने कोलकाता में कई आश्रम और अस्पताल स्थापित किए।

मिशनरीज ऑफ चैरिटी के माध्यम से, मदर टेरेसा ने 123 देशों में 610 शाखाओं के माध्यम से सेवा कार्य किया। उन्होंने दुनिया भर के कई देशों में काम किया।

यहां मदर टेरेसा द्वारा स्थापित कुछ प्रमुख आश्रमों का नाम दिया गया है:

  • निर्मला शिशु भवन: यह आश्रम अनाथ बच्चों की देखभाल के लिए समर्पित है।
  • निर्मला कुष्ठ आश्रम: यह आश्रम कुष्ठ रोगियों की देखभाल के लिए समर्पित है।
  • निर्मला मृतक आश्रम: यह आश्रम मरने वालों की देखभाल के लिए समर्पित है।
  • निर्मला आश्रम: यह आश्रम गरीब और जरूरतमंद लोगों की सेवा के लिए समर्पित है।

मदर टेरेसा ने भारत के अलावा दुनिया भर में भी कई आश्रम स्थापित किए। इनमें से कुछ आश्रमों को उनके नाम पर रखा गया है, जैसे कि मदर टेरेसा आश्रम, मदर टेरेसा मेमोरियल अस्पताल और मदर टेरेसा होम फॉर द एल्डरली।

मदर टेरेसा के आश्रमों ने दुनिया भर में गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने लाखों लोगों को भोजन, आश्रय, शिक्षा और चिकित्सा देखभाल प्रदान की है।

मदर टेरेसा का टाइम लाइन ग्राफ (Mother Teresa time line)

  • 1910: एग्नेस गोन्ज़ालेज बोयाजिओ का जन्म, स्कॉपजे, यूगोस्लाविया
  • 1928: एग्नेस लोरेटो सिस्टरहुड में शामिल हो गईं
  • 1929: एग्नेस भारत आईं और टेरेसा नाम अपनाया
  • 1937: टेरेसा ने कोलकाता में अनाथ बच्चों को पढ़ाना शुरू किया
  • 1950: टेरेसा ने मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की
  • 1952: टेरेसा ने कोलकाता में अपना पहला आश्रम, निर्मला आश्रम खोला
  • 1962: टेरेसा को पद्म श्री से सम्मानित किया गया
  • 1965: टेरेसा को अल्बर्ट श्वेत्ज़र इंटरनेशनल प्राइज़ से सम्मानित किया गया
  • 1971: टेरेसा को “द मदर ऑफ कलकत्ता” के नाम से सम्मानित किया गया
  • 1979: टेरेसा को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया
  • 1980: टेरेसा को भारत रत्न से सम्मानित किया गया
  • 1997: टेरेसा का निधन हो गया
  • 1997: टेरेसा को कलकत्ता की संत की उपाधि दी गई
  • 2016: 09 सितम्बर 2016 को वेटिकन सिटी में पोप फ्रांसिस ने मदर टेरेसा को संत की उपाधि दी।

मदर टेरेसा के फेमस वाक्य (Mother Teresa most famous quote)

मदर टेरेसा एक रोमन कैथोलिक नन थीं जिन्होंने गरीब, बीमार और अनाथ लोगों की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था। उन्हें 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

मदर टेरेसा के कई प्रेरणादायक वाक्य हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

  • “सबसे बड़ी भूख प्रेम की भूख है।”
  • “यदि आप एक सौ लोगों को भोजन नहीं करा सकते हैं, तो सिर्फ एक को ही भोजन करवाएं।”
  • “यदि आप चाहते हैं की एक प्रेम संदेश सुना जाए तो पहले आप खुद से प्रेम संदेश भेजना शुरू करें, जैसे एक चिराग को जलाए रखने के लिए हमें दिए में तेल डालते रहना पड़ता है।”
  • “यदि आप दुनिया में बदलाव लाना चाहते हैं, तो अपने आप को बदलें।”
  • “जीवन छोटा है, इसे प्यार से जियो।”


मदर टेरेसा की प्रेरणादायक वाक्य (Mother Teresa quotes)

मदर टेरेसा एक रोमन कैथोलिक नन थीं जिन्होंने गरीब, बीमार और अनाथ लोगों की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था। उन्हें 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

मदर टेरेसा के कई प्रेरणादायक वाक्य हैं। यहां 20 ऐसे वाक्य दिए गए हैं:

  1. “सबसे बड़ी भूख प्रेम की भूख है।”
  2. “यदि आप एक सौ लोगों को भोजन नहीं करा सकते हैं, तो सिर्फ एक को ही भोजन करवाएं।”
  3. “यदि आप चाहते हैं की एक प्रेम संदेश सुना जाए तो पहले आप खुद से प्रेम संदेश भेजना शुरू करें, जैसे एक चिराग को जलाए रखने के लिए हमें दिए में तेल डालते रहना पड़ता है।”
  4. “यदि आप दुनिया में बदलाव लाना चाहते हैं, तो अपने आप को बदलें।”
  5. “जीवन छोटा है, इसे प्यार से जियो।”
  6. “आप जिस भी व्यक्ति से मिलें, उसे ईश्वर के रूप में देखें।”
  7. “प्रेम में कोई शर्त नहीं होती है।”
  8. “दयालुता एक छोटी सी चीज है, लेकिन यह दुनिया में एक बड़ा अंतर ला सकती है।”
  9. “जीवन का सबसे बड़ा गौरव कभी हार न मानना है।”
  10. “हमें अपने आसपास की दुनिया को बदलने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए।”
  11. “हम सभी भगवान के बच्चे हैं और हमें एक दूसरे से प्यार करना चाहिए।”
  12. “हमारा समय दूसरों की सेवा में बिताना चाहिए।”
  13. “हम छोटी-छोटी बातों से भी बड़ा बदलाव ला सकते हैं।”
  14. “हम सभी में अच्छाई है, हमें इसे बाहर लाने के लिए काम करना चाहिए।”
  15. “हम सभी एक दूसरे के लिए जिम्मेदार हैं।”
  16. “हमारा लक्ष्य दुनिया को एक बेहतर जगह बनाना होना चाहिए।”

मदर टेरेसा के अनमोल-बचन (mother teresa quotes in hindi)

  • सबसे बड़ी भूख प्रेम की भूख है” – This means that the greatest hunger is the hunger for love.
  • “यदि आप एक सौ लोगों को भोजन नहीं करा सकते हैं, तो सिर्फ एक को ही भोजन करवाएं” – This means that even if you cannot help everyone, you can still help someone.
  • “यदि आप दुनिया में बदलाव लाना चाहते हैं, तो अपने आप को बदलें” – This means that if you want to change the world, you must first change yourself.
  • “जीवन छोटा है, इसे प्यार से जियो” – This means that life is short, so live it with love.
  • “आप जिस भी व्यक्ति से मिलें, उसे ईश्वर के रूप में देखें” – This means that see everyone as a manifestation of God.

मदर टेरेसा का भारतीय समाज एवं संस्कृति पर प्रभाव

मदर टेरेसा के प्रभाव को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है:

  • सेवाभाव और करुणा की भावना में वृद्धि: मदर टेरेसा ने गरीब, बीमार और अनाथ लोगों की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनकी सेवाओं ने भारतीय समाज में सेवाभाव और करुणा की भावना को बढ़ावा दिया।
  • गरीबी और बीमारी के खिलाफ जागरूकता में वृद्धि: मदर टेरेसा ने गरीबी और बीमारी के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने में मदद की। उन्होंने लोगों को गरीबी और बीमारी के कारणों के बारे में बताया और उन्हें इन समस्याओं को दूर करने के लिए काम करने के लिए प्रोत्साहित किया।
  • महिलाओं के सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका: मदर टेरेसा ने महिलाओं के सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने महिलाओं को शिक्षा और रोजगार के अवसर प्रदान किए और उन्हें अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया।
  • भारतीय संस्कृति के मूल्यों और आदर्शों का प्रसार: मदर टेरेसा ने भारतीय संस्कृति के मूल्यों और आदर्शों को दुनिया भर में फैलाया। उन्होंने लोगों को प्रेम, करुणा और सेवा के महत्व के बारे में बताया।

मदर टेरेसा भारतीय समाज और संस्कृति के लिए एक प्रेरणा हैं। उनकी सेवाओं और शिक्षाओं ने दुनिया भर के लोगों को प्रभावित किया है।

मदर टेरेसा की नजरों में दुनिया कैसी होनी चाहिए?

मदर टेरेसा की नजरों में दुनिया कैसी होनी चाहिए, इसके बारे में कुछ विशिष्ट उदाहरण यहां दिए गए हैं:

  • दुनिया में कोई भी भूखा या गरीब नहीं होना चाहिए।
  • हर किसी को शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच होनी चाहिए।
  • सभी लोगों को समान अवसर और अधिकार होना चाहिए।
  • सभी लोग शांति और सद्भाव में रह सकें।

मदर टेरेसा ने दुनिया को एक बेहतर जगह बनाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनकी विरासत आज भी दुनिया भर के लोगों को प्रेरित करती है।

मदर टेरेसा के जीवन और कार्यों का प्रभाव

मदर टेरेसा के जीवन और कार्यों का दुनिया भर में गहरा प्रभाव पड़ा है। उन्होंने गरीब, बीमार, अनाथ और मरने वालों की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने दुनिया भर के लोगों को गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा के लिए प्रेरित किया।

मदर टेरेसा के आश्रमों ने दुनिया भर में लाखों लोगों की मदद की है। उन्होंने भोजन, आश्रय, शिक्षा और चिकित्सा देखभाल प्रदान की है। मदर टेरेसा के कार्यों ने सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा देने में भी मदद की है।

मदर टेरेसा एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व हैं। उन्होंने दुनिया को दिखाया कि कैसे छोटी-छोटी बातों से भी बड़ा बदलाव लाया जा सकता है।

नन किसे कहते हैं?

नन एक महिला होती हैं जो किसी धार्मिक समुदाय की सदस्य होती हैं और जो ब्रह्मचर्य का पालन करती हैं। नन आमतौर पर एक धार्मिक संस्थान में रहती हैं और धार्मिक कार्यों में लगी रहती हैं, जैसे कि प्रार्थना, उपवास और दान। नन अक्सर गरीब, बीमार और अनाथ लोगों की सेवा भी करती हैं।

नन के लिए कई अलग-अलग नाम हैं, जिनमें “सिस्टर्स” और “मदर” शामिल हैं। नन आमतौर पर सफेद या काले रंग की पोशाक पहनती हैं, जिसे “हॉली कोट” कहा जाता है।

नन का इतिहास बहुत पुराना है। ईसाई धर्म की शुरुआत से ही नन मौजूद हैं। नन अक्सर धार्मिक और सामाजिक परिवर्तन के लिए प्रेरणा रही हैं। उदाहरण के लिए, मदर टेरेसा एक रोमन कैथोलिक नन थीं जिन्होंने गरीब, बीमार और अनाथ लोगों की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था। उन्हें 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

आज दुनिया भर में लाखों नन हैं। वे विभिन्न धार्मिक समुदायों से आती हैं और विभिन्न प्रकार के कार्य करती हैं।

मदर टेरेसा के जीवन से संबंधित विवाद

मदर टेरेसा को दुनिया भर में एक महान मानवतावादी और धर्मार्थ कार्यकर्ता के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने गरीब, बीमार और अनाथ लोगों की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। हालांकि, उनके जीवन और काम पर कई विवाद भी हुए हैं।

  • एक प्रमुख विवाद यह है कि मदर टेरेसा ने गरीब लोगों को चिकित्सा देखभाल प्रदान करने में पर्याप्त नहीं किया। उनके आश्रमों में अक्सर पर्याप्त चिकित्सा देखभाल की सुविधाएं नहीं होती थीं, और मरीजों को अक्सर दर्द और बीमारी में पीड़ित रहना पड़ता था। कुछ लोगों का मानना ​​है कि मदर टेरेसा ने अपने मरीजों को अधिक प्रभावी उपचार तक पहुंच प्रदान करने के लिए पर्याप्त नहीं किया।
  • एक अन्य विवाद यह है कि मदर टेरेसा ने धर्म परिवर्तन को बढ़ावा दिया। उनके आश्रमों में अक्सर मरीजों को ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था, भले ही उनका धर्म कुछ और हो। कुछ लोगों का मानना ​​है कि मदर टेरेसा ने गरीब लोगों का शोषण किया और उन्हें धर्मांतरित करने के लिए मजबूर किया।
  • मदर टेरेसा पर उनके आश्रमों में गंदगी और अस्वच्छता के आरोप भी लगाए गए हैं। कुछ लोगों का मानना ​​है कि उनके आश्रमों में मरीजों को आवश्यक स्वच्छता सुविधाएं नहीं मिल रही थीं, जिससे उन्हें बीमारियों का खतरा बढ़ गया।

इन विवादों के बावजूद, मदर टेरेसा एक प्रेरणादायक व्यक्ति हैं जिन्होंने दुनिया भर के लोगों को प्रभावित किया है। उनकी सेवाओं और शिक्षाओं ने गरीबी, बीमारी और अनाथता से प्रभावित लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में मदद की है।

मदर टेरेसा को संत की उपाधि

मदर टेरेसा को संत की उपाधि 4 सितंबर, 2016 को रोमन कैथोलिक चर्च द्वारा दी गई थी। उन्हें पोप फ्रांसिस ने संत घोषित किया था।

संत की उपाधि देने की प्रक्रिया को “कैनोनाइज़ेशन” कहा जाता है। यह एक लंबी और जटिल प्रक्रिया है, जिसमें कई चरणों होते हैं।

पहले चरण में: कैथोलिक चर्च यह निर्धारित करता है कि क्या किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद चमत्कार हुए हैं। चमत्कार होने के लिए, किसी व्यक्ति को एक ऐसी बीमारी से ठीक होना चाहिए जिसका इलाज नहीं हो सकता।

मदर टेरेसा की मृत्यु के बाद, उनके जीवन और कार्यों की जांच की गई। यह निर्धारित किया गया कि उन्होंने अपने जीवन के दौरान कई चमत्कार किए थे। इनमें से एक चमत्कार यह था कि एक भारतीय महिला मोनिका बेसेरा को पेट के कैंसर से ठीक कर दिया गया था।

दूसरे चरण में: कैथोलिक चर्च यह निर्धारित करता है कि क्या व्यक्ति को एक संत माना जा सकता है। इस चरण में, व्यक्ति के जीवन और कार्यों का गहन अध्ययन किया जाता है।

मदर टेरेसा के जीवन और कार्यों की जांच के बाद, यह निर्धारित किया गया कि उन्हें एक संत माना जा सकता है।

तीसरे और अंतिम चरण में: कैथोलिक चर्च व्यक्ति को संत घोषित करता है। इस चरण में, पोप व्यक्ति को संत घोषित करते हैं।

मदर टेरेसा को संत घोषित करने के बाद, उन्हें कलकत्ता की संत टेरेसा के नाम से जाना जाता है।

मदर टेरेसा की समाधि

मदर टेरेसा को कलकत्ता, भारत में संत टेरेसा चर्च में दफनाया गया है। उनकी अंतिम संस्कार संस्कार की प्रक्रिया निम्नलिखित है:

  • मदर टेरेसा की मृत्यु के बाद, उनका शरीर कोलकाता के मिशनरीज ऑफ चैरिटी के मुख्यालय में ले जाया गया।
  • उनकी लाश को एक सादे ताबूत में रखा गया और एक सफेद चादर से ढका गया।
  • उनकी लाश को एक कैथेड्रल में ले जाया गया और एक सार्वजनिक अंतिम संस्कार समारोह आयोजित किया गया।
  • अंतिम संस्कार समारोह में हजारों लोग शामिल हुए, जिनमें भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री भी शामिल थे।
  • समारोह के बाद, मदर टेरेसा का शरीर संत टेरेसा चर्च में दफना दिया गया। उनके अंतिम संस्कार संस्कार का नेतृत्व कैथोलिक चर्च के बिशप ने किया।

FAQ -Mother Teresa

मदर टेरेसा का पूरा नाम क्या है?

मदर टेरेसा का पूरा नाम “अगनेस गोंझा बोयाजिजू” (Agnes Gonxha Bojaxhiu) है।

मदर टेरेसा कहां की थी?

मदर टेरेसा अल्बानिया के स्कोपजे शहर की थी।

मदर टेरेसा का जन्म कब हुआ?

मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को स्कॉप्जे, उस्मान साम्राज्य (वर्तमान सोप्जे, मेसेडोनिया गणराज्य) में हुआ था।

मदर टेरेसा की मृत्यु कब हुई थी?

मदर टेरेसा की मृत्यु 5 सितंबर, 1997 को दिल का दौरा पड़ने के कारण कोलकाता, भारत में हुई।

मदर टेरेसा ने भारत की नागरिकता कब ली?

मदर टेरेसा ने 1948 में भारत की नागरिकता ली। वे 1928 में भारत आईं थीं और तब से ही भारत में रह रही थीं।

मदर टेरेसा का नाम क्यों बदला गया?

वे अपने नाम से संत थेरेस ऑस्ट्रेलिया और टेरेसा ऑफ अविला को सम्मान देना चाहती थीं। मदर टेरेसा द्वारा 1931 में धार्मिक प्रतिज्ञा लेने के बाद सेंट टेरेसा (थेरेसा) ऑफ लिसीयूक्स के नाम पर “टेरेसा” नाम पड़ा।

मदर टेरेसा भारत क्यों आई?

मदर टेरेसा एक शिक्षक के रूप में 6 जनवरी 1929 को दार्जिलिंग भारत पहुंची। भारत में काम करते हुए यह गरीबों और बीमारी की पीड़ा से बहुत दुखी थी।

मदर टेरेसा को नोबेल पुरस्कार कब मिला?

मदर टेरेसा को 1979 में शांति का नोबेल पुरस्कार मिला। उन्हें यह पुरस्कार "दुनिया में गरीबी और संकट को दूर करने के संघर्ष में किए गए उनके कार्यों" के लिए दिया गया था।

मदर टेरेसा को नोबेल पुरस्कार क्यों मिला?

मदर टेरेसा को 1979 में शांति का नोबेल पुरस्कार मिला। उन्हें यह पुरस्कार "दुनिया में गरीबी और संकट को दूर करने के संघर्ष में किए गए उनके कार्यों" के लिए दिया गया था। मदर टेरेसा ने अपने जीवन को गरीब और पीड़ित लोगों की सेवा के लिए समर्पित कर दिया।

मदर टेरेसा को कौन सा प्रसिद्ध पुरस्कार मिला?

नोबेल शांति पुरस्कार (1979)
पद्म श्री (1962)
भारत रत्न (1980)
रेमन मैगसेसे पुरस्कार (1962)
अल्बर्ट श्वेत्ज़र इंटरनेशनल प्राइज़ (1965)
पोप जॉन XXIII शांति पुरस्कार (1976)
मेडल ऑफ फ्रीडम (1985)


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